चक्रव्यूह क्या था | Mahabharat chakravyuh | - Health Care Tips | Trends | Technology

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Monday 11 May 2020

चक्रव्यूह क्या था | Mahabharat chakravyuh |


अभेद महाभारत चक्रव्यूह -

Mahabharat chakravyuh
Mahabharat chakravyuh

विश्व का सबसे बड़ा युद्ध महाभारत का कुरुक्षेत्र युद्ध, इतिहास में इतना भयंकर युद्ध केवल एक बार ही घटित हुआ था। अनुमान लगाया जाता है कि महाभारत के युद्ध में परमाणू हथियारों का उपयॊग भी किया गया था। ‘चक्र’ यानी ‘पहिया’ और ‘व्यूह’ यानी ‘लोगो का गठन’, पहिए के जैसे घूमता हुआ व्यूह है "चक्रव्यूह"। कुरुक्षेत्र युद्ध का सबसे खतरनाक तंत्र था, यह चक्रव्यूह। वैसे भी आज का आधुनिक युग भी चक्रव्यूह जैसे रण तंत्र से अनजान हैं। चक्रव्यू को बेधना असंभव था, उस काल में केवल सात लोग ही इसे बेधना जानते थे। भगवान कृष्ण के साथ अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थाम और प्रद्युम्न ही व्यूह को बेध सकते थे। अभिमन्यु केवल चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना जानता था, बाहर आना नहीं जानत था।*


Mahabharat chakravyuh
Mahabharat chakravyuh

चक्रव्यूह में कुल मिलाकर सात परत थी। सबसे अंदर की परत में सबसे वीर सैनिक तैनात रहते थे। यह परत इस प्रकार बनायीं जाती थी, कि बाहर वाली परत के सैनिकों से अंदर वाली परत के सैनिक शारीरिक, मानसिक रूप से बहुत अधिक बलशाली होते थे। सबसे बाहर वाली परत में पैदल सैनिक तैनात होते थे। अंदर की परतो में, शत्र से सुसज्जित हाथियों की सेना होती थी। चक्रव्यूह की संरचना बिल्कुल भूल भुलैय्या के जैसे हॊती थी, जिसमें एक बार अगर कोई शत्रु फंस गया, तो घन-चक्कर बन जाता था।*

Mahabharat chakravyuh
Mahabharat chakravyuh
चक्रव्यूह में हर लेवल की परत में सेना, घड़ी के कांटे के जैसे ही घूमती रहती थी। इससे इस व्यूह के अंदर प्रवेश करने वाला हर शत्रु, अंदर ही खॊ जाता और बाहर जाने का रास्ता भटक जाता था। माहाभारत के युद्ध में व्यूह की संरचना करने वाले गुरुद्रॊणाचार्य ही थे। चक्रव्यूह को द्वापर युग का सबसे सर्वेष्ठ सैन्य दलदल माना जाता था। इस चक्रव्यूह का गठन, युधिष्टिर को बंधक बनाने के लिए किया गया था। माना जाता है कि, (48*128) किलॊमीटर के क्षेत्रफल में कुरुक्षेत्र नाम की जगह पर युद्ध हुआ था, जिसमें भाग लेने वाले सैनिकों की संख्या लगभग 18 लाख थी!*


Mahabharat chakravyuh-

Mahabharat chakravyuh
Mahabharat chakravyuh
चक्रव्यूह को मौत का पहिया भी कहा जाता था, जो की लगातार घूमता रहता था। क्यों कि एक बार जो इसके अंदर गया वह कभी बाहर नहीं आ पाया। यह पृथ्वी की तरह अपनी धुरी पर घूमता था, साथ ही साथ हर परत(लेवल) भी परिक्रमा करती रहती थी। इस कारण, बाहर जाने का रास्ता, हर वक्त अलग दिशा में घूम जाता था, जो शत्रु को पूरा भ्रमित कर देता था। आधुनिक युग भी इतने उलझे हुए और असामान्य रण तंत्र को अपने युद्ध में नहीं अपना सकता है। ज़रा सॊचिये कि हज़ारो वर्ष पूर्व चक्रव्यूह जैसी घातक युद्ध तकनीक या संरचना को बनाने वाले कितने बुद्धिवान रहें होंगे।*

चक्रव्यूह उस तूफ़ान की तरह था, जो अपने मार्ग में आने वाले हर जीवन को तिनके की तरह उड़ाकर नष्ट कर देता था। इस व्यूह को कैसे भेदना है, इसकी जानकारी केवल सात लोगों के ही पास थी। अभिमन्यू, अर्जुन पुत्र, व्यूह के भीतर प्रवेश करना जानता था। लेकिन वह बाहर निकलना नहीं जानता था। इस कारणवश कौरवों ने छलपूर्वक अभिमन्यू की हत्या कर दी थी।  यह माना जाता है कि, चक्रव्यूह की संरचना शत्रु को मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से इतना कमजोर बनाता था कि, एक ही पल में हज़ारों शत्रु सैनिक मारे जाते थे। कृष्ण, अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थाम और प्रद्युम्न के अलावा चक्रव्यूह से बाहर निकलने की रणनीति कोई नहीं जनता था।*

Mahabharat chakravyuh
Mahabharat chakravyuh
अपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि, शंख के नाद के अनुसार चक्रव्यूह के सैनिक अपने स्थिती को बदल सकते थे। कॊई भी सेनापती या सैनिक अपनी मर्ज़ी से अपने स्थान को बदल नहीं सकता था। सदियों पहले इतने वैज्ञानिक रूप से अनुशासित रण नीती की संरचना करना सामान्य विषय नहीं था, इसीलिए आज भी हमे अपने इतिहास पर बहुत गर्व है । माहाभारत के युद्ध में कुल तीन बार चक्रव्यूह का गठन हुआ था, जिनमें से एक संरचना में अर्जुन पुत्र अभिमन्यू की म्रुत्यू हुई थी। केवल अर्जुन ने कृष्ण-कृपा से चक्रव्यूह संरचना को बेध कर जयद्रत का वध किया था और कौरवो पर विजय प्राप्त की थी। हमें गर्व होना चाहिए कि, हम उस देश के वासी है, जिस देश में सदियों पूर्व के विज्ञान और तकनीक का अद्भुत निर्देशन और प्रदर्शन पढ़ने को मिला है। चक्रव्यूह न भूतो न भविष्यती युद्ध तकनीक था, न भूत काल में किसी ने देखा और ना भविष्य में कॊई इसे देख पायेगा।

Mahabharat chakravyuh
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मध्य प्रदेश में एक स्थान और कर्नाटक के शिवमंदिर में आज भी चक्रव्यू के चित्र बने हुए है, और हिमाचल प्रदेश मे सोलह सींगी नामक जगह पर भी इसके चत्र अंकित है। साथ में ये उन लोगो के मुँह पर तमचा भी है जो समय समय पर इतिहास को चुनौती देते रहते है।

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